आस..
ओढ़ सुधियों की सुहाग चूनर,
आंजा है नयनों में प्रतीक्षा का काजर,
मली है अनुराग की लाली गालों पर,
और,
सजा ली है सूर्य किरण सी स्मिति......
अधरों पर..
सींचा है मन आँगन की मुरझाई दूब को
उछाह के जल से बरसों बाद..
सुरभित हुआ है तन का हरसिंगार
आशा का दियना भी बारा है, मन की देहरी पर........
जगर मगर करता है अंतर्मन,
कुछ नेह भरी मनुहारे कोछियाये कोंछे में,
अन्जोरे हैं चम्पाकली चांदनी से शब्द
जोहती हूँ बाट तुम्हारी,
तुम्हारे आने की आस ही जीवन का उल्लास है
तुम आस नही तोडना, मैं मोह नही छोडूंगी ...
राह यूँ ही ताकूंगी, आशा का दियना नित देहरी पर बारुंगी ......
-वंदना
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