Monday 14 May 2012

ओ नदिया

ओ नदिया होती है क्यूँ उदास..?
रूठ, रवि जो गया
नील नभ के पास ,
है अभी रोष और
चमकने की कामना,
धूप और उजियारा पूरे दिन बाँटना,
तनिक हौल पाते जब
जागेगी प्यास ,
पानी को तरसेगा
सुबह जो भूला था
साँझ को ,परसेगा
तेज़ कदम आयेगा,
त्याग ,मान-अभिमान
अंक में छुप जायगा ,
छोड़ तुझ को भला
और कहाँ जायगा,
तेरे आँचल की ठंढक से,
पिघल पिघल जायगा...!
बस तू अपना धर्म निभा,
शान्तमना बहती जा....!

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